MP News: NEET UG परीक्षा में हुई गड़बड़ियों और परिणाम रोकने की मांग पर जब इंदौर बेंच में सुनवाई हो रही थी, तब जजों ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने सभी को चौंका दिया। कोर्ट ने खुद कोर्टरूम की लाइटें बंद कर दीं और कहा, “हम देखना चाहते हैं कि अंधेरे में परीक्षा कैसे दी जा सकती है।” यह संकेत देने के लिए था कि परीक्षार्थियों को कैसा सामना करना पड़ा होगा जब 4 मई को इंदौर में तेज आंधी और बारिश की वजह से कई परीक्षा केंद्रों की बिजली चली गई थी। अब कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है।
इस मामले में कुल 90 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई के दौरान कुछ वीडियो सबूत भी अदालत में पेश किए, जिन्हें कोर्ट ने खुद देखा। इन वीडियोज़ में साफ दिखाई दिया कि परीक्षा केंद्रों में अंधेरा इतना था कि परीक्षार्थी बमुश्किल एक मीटर दूर तक देख सकते थे। वहीं कुछ वीडियो में यह भी दिखा कि जब अभिभावकों ने केंद्रों के बाहर बिजली जाने की शिकायत की तो पुलिसकर्मी उन्हें डरा रहे थे। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि इंदौर के सभी केंद्रों पर दोबारा परीक्षा कराई जाए, क्योंकि यह छात्रों के भविष्य का सवाल है।
NTA ने दोबारा परीक्षा का विरोध किया
इस पूरे विवाद में NTA (राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी) ने दोबारा परीक्षा कराने का विरोध किया है। उनका कहना है कि इंदौर के 27 हजार छात्रों को कुछ सौ छात्रों की समस्या के कारण परेशान नहीं किया जा सकता। NTA की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पूरे देश में 22 लाख से ज्यादा छात्र NEET परीक्षा में बैठे थे। सिर्फ इंदौर में 49 परीक्षा केंद्र थे, जिनमें से केवल 18 में बिजली की समस्या आई। ऐसे में दोबारा परीक्षा कराना व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि 1300 छात्रों ने देशभर में 600 से ज्यादा अंक प्राप्त किए हैं, जिनमें से 11 छात्र इंदौर के उन्हीं प्रभावित केंद्रों से हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क और कोर्ट की टिप्पणी
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता मृदुल भटनागर और नितिन भाटी ने तर्क दिया कि जब बिजली गई तो परीक्षा कक्षों की खिड़कियां तेज हवा और बारिश के कारण बंद कर दी गई थीं। अंदर न रोशनी थी और न ही कोई पावर बैकअप। पर्यवेक्षकों ने खुद माना कि विजिबिलिटी केवल एक मीटर रह गई थी जबकि सामान्यत: यह छह मीटर होती है। कोर्ट ने इन तर्कों को गंभीरता से लिया और यही वजह थी कि प्रतीकात्मक रूप से खुद कोर्टरूम की लाइटें बंद कर दी गईं। इससे यह जाहिर हुआ कि कोर्ट छात्रों की परेशानी को लेकर संवेदनशील है और अब वह पूरे मामले का फैसला सोच-समझकर देगा।