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Chhatrapati Shivaji: शिवाजी ने मुगलों को दी खुली चुनौती, आगरा से निकल भागे थे मिठाई की टोकरी में

On: June 26, 2025 2:46 PM
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Chhatrapati Shivaji: शिवाजी ने मुगलों को दी खुली चुनौती, आगरा से निकल भागे थे मिठाई की टोकरी में
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Chhatrapati Shivaji: शिवाजी (जन्म: अप्रैल 1627 या 19 फरवरी 1630, शिवनेर, पुणे—मृत्यु: 3 अप्रैल 1680, रायगढ़) एक ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने मुगल साम्राज्य के खिलाफ खड़े होकर 17वीं सदी में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उनका साम्राज्य धार्मिक सहिष्णुता और ब्राह्मणों, मराठों, और प्रभुओं के एकीकरण पर आधारित था। शिवाजी का जन्म उस समय हुआ, जब भारत पर मुगल और बीजापुर व गोलकुंडा के मुस्लिम सुल्तानों का शासन था। हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार और धार्मिक उत्पीड़न ने उन्हें इतना विचलित किया कि 16 साल की उम्र में ही उन्होंने हिंदू स्वतंत्रता के लिए ईश्वर द्वारा चुने गए योद्धा के रूप में खुद को देखना शुरू कर दिया। उनकी यह दृढ़ता और साहस ने उन्हें भारत के इतिहास में अमर बना दिया। आइए, शिवाजी की वीर गाथा को और करीब से जानते हैं।

शुरुआती जीवन और साहसिक कारनामे

शिवाजी का जन्म पुणे के शिवनेर किले में एक कुलीन मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता शाहजी भोसले बीजापुर सल्तनत के लिए काम करते थे, और उनकी माता जीजाबाई ने उन्हें हिंदू धर्म और वीरता की कहानियां सुनाकर बड़ा किया। उस समय भारत में मुगल और दक्षिण की सल्तनतें हावी थीं, जो अपने शासित लोगों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं मानती थीं। शिवाजी ने हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को देखकर कम उम्र में ही बगावत का मन बना लिया। 1655 के आसपास, उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ बीजापुर के कमजोर किलों पर कब्जा करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने कुछ हिंदू सहधर्मियों को भी सबक सिखाया, जो सल्तनत के साथ मिल गए थे। उनकी साहसी रणनीति और सख्ती ने उन्हें लोगों का हीरो बना दिया। उनके हमले इतने तेज और चतुराई भरे थे कि बीजापुर की छोटी-मोटी सेनाएं उनके सामने टिक नहीं पाईं।

मुगलों को चुनौती और अफजल खान का वध

1659 में, बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी को कुचलने के लिए अफजल खान के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों की सेना भेजी। शिवाजी ने चतुराई दिखाते हुए डरने का नाटक किया और अफजल खान को पहाड़ी जंगलों में मिलने के लिए बुलाया। एक मुलाकात के दौरान, शिवाजी ने अपनी बाघनख (टाइगर क्लॉ) से अफजल खान को मार डाला। उसी समय, उनकी पहले से तैनात सेना ने बीजापुर की सेना पर हमला कर उसे तितर-बितर कर दिया। रातोंरात शिवाजी एक ताकतवर योद्धा के रूप में उभरे, जिनके पास अब बीजापुर की सेना के घोड़े, हथियार, और गोला-बारूद थे। मुगल सम्राट औरंगजेब, जो शिवाजी की बढ़ती ताकत से चिंतित था, ने अपने दक्षिणी सूबेदार को उन्हें रोकने का आदेश दिया। लेकिन शिवाजी ने रात के अंधेरे में सूबेदार के शिविर पर धावा बोलकर उसे घायल कर दिया और उसके बेटे को मार डाला। इसके बाद, उन्होंने मुगलों को और उकसाने के लिए सूरत जैसे धनी शहर को लूट लिया।

औरंगजेब की कैद और चतुराई से भागना

शिवाजी की बढ़ती ताकत को देखकर औरंगजेब ने अपने सबसे बड़े सेनापति मिर्जा राजा जय सिंह को 100,000 सैनिकों के साथ भेजा। इस विशाल सेना के सामने शिवाजी को शांति के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्हें और उनके बेटे संभाजी को औरंगजेब के दरबार में आगरा बुलाया गया, जहां उन्हें मुगल सामंत के रूप में स्वीकार किया जाना था। लेकिन आगरा में, सैकड़ों मील दूर अपने घर से, शिवाजी और संभाजी को नजरबंद कर दिया गया, और उनकी जान को खतरा था। शिवाजी ने हार नहीं मानी। उन्होंने बीमारी का बहाना बनाया और गरीबों के लिए मिठाइयों की विशाल टोकरियां भेजनी शुरू कीं। 17 अगस्त 1666 को, शिवाजी और संभाजी इन्हीं टोकरियों में छिपकर गार्ड्स को चकमा देकर भाग निकले। यह उनके जीवन की सबसे रोमांचक घटना थी, जिसने भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी।

मराठा साम्राज्य की स्थापना

आगरा से भागने के बाद शिवाजी को उनके अनुयायियों ने अपने नेता के रूप में फिर से स्वीकार किया। दो साल के भीतर, उन्होंने न केवल अपनी खोई हुई जमीनें वापस ले लीं, बल्कि अपने साम्राज्य का विस्तार भी किया। उन्होंने मुगल क्षेत्रों से कर वसूला, उनके धनी शहरों को लूटा, और अपनी सेना को और मजबूत किया। शिवाजी ने प्रजा के कल्याण के लिए कई सुधार किए और पुर्तगालियों व अंग्रेजों से प्रेरणा लेकर एक नौसेना बनाई। वे अपने समय के पहले भारतीय शासक थे, जिन्होंने समुद्री शक्ति का उपयोग व्यापार और रक्षा दोनों के लिए किया। 1674 में, शिवाजी ने भव्य समारोह के साथ खुद को स्वतंत्र सम्राट घोषित किया, जिससे मराठा साम्राज्य की औपचारिक शुरुआत हुई। इस दौरान उन्होंने हिंदुओं को एकजुट किया और औरंगजेब के हिंदू विरोधी नीतियों, जैसे जजिया कर और मंदिरों को तोड़ने, के खिलाफ खड़े हुए।

धार्मिक सहिष्णुता और अंतिम वर्ष

शिवाजी एक सच्चे हिंदू शासक थे, लेकिन उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता का अनोखा उदाहरण पेश किया। उन्होंने अपने साम्राज्य में हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के धार्मिक स्थलों की रक्षा की। उनके प्रशासन में कई मुस्लिम सैनिक और अधिकारी थे। अपने अंतिम वर्षों में, शिवाजी ने दक्षिण में एक बड़ा अभियान चलाया, जहां उन्होंने बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों से गठबंधन किया ताकि मुगलों को पूरे भारत पर कब्जा करने से रोका जा सके। लेकिन उनके बड़े बेटे संभाजी के मुगलों की ओर चले जाने और घरेलू कलह ने उनके अंतिम वर्षों को मुश्किल बना दिया। अप्रैल 1680 में, रायगढ़ किले में बीमारी के कारण शिवाजी का निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने भारत को एक ऐसे योद्धा से वंचित कर दिया, जिसने सदियों तक गुलामी झेल रहे लोगों में स्वतंत्रता की लौ जलाई। शिवाजी की धार्मिक सहिष्णुता और प्रजा के प्रति उनकी जिम्मेदारी आज भी हमें प्रेरित करती है।

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