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Chhatrapati Sambhaji Maharaj: भीमा नदी किनारे दी वीरगति, संभाजी ने औरंगज़ेब की नींव हिला दी थी अपने बलिदान से

Chhatrapati Sambhaji Maharaj: भीमा नदी किनारे दी वीरगति, संभाजी ने औरंगज़ेब की नींव हिला दी थी अपने बलिदान से

Chhatrapati Sambhaji Maharaj: छत्रपति संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र, एक नन्हा शेर थे, जिन्होंने अपनी वीरता और हिंदू धर्म के प्रति अटूट समर्पण से इतिहास में अमर स्थान बनाया। मुगल सम्राट औरंगजेब ने उन्हें 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएं दीं, लेकिन संभाजी ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने मुगलों और पुर्तगालियों के खिलाफ जो जंग लड़ी, उसने न केवल मराठा साम्राज्य को मजबूत किया, बल्कि उत्तरी भारत में हिंदू शासन की नींव को भी सुरक्षित रखा। 11 मार्च 1689 को, मात्र 31 साल की उम्र में, पुणे के पास भीमा नदी के किनारे तुलापुर में उनकी क्रूर हत्या कर दी गई। इस दिन हमने एक युवा सम्राट को खो दिया, जो न केवल औरंगजेब के खिलाफ डटकर लड़ा, बल्कि हिंदू पुनर्जनन के लिए भी समर्पित था। आइए, इस महान योद्धा की गाथा को और करीब से जानते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। उनके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज और माता सईबाई थीं। मात्र 2 साल की उम्र में मां को खो देने के बाद उनकी दादी जीजाबाई ने उनका लालन-पालन किया। संभाजी संस्कृत, फारसी, मराठी और छह अन्य भाषाओं में पारंगत थे। कम उम्र से ही वे युद्धकला, कूटनीति, और प्रशासन में निपुण हो गए थे। 1666 में उनका विवाह येसुबाई से हुआ, और उनके पुत्र शाहू महाराज थे। 1674 में शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के दौरान संभाजी को मराठा साम्राज्य का युवराज घोषित किया गया। केवल 16 साल की उम्र में उन्होंने रामनगर में अपनी पहली लड़ाई लड़ी, जहां उनकी वीरता ने सबको प्रभावित किया। लेकिन कुछ समय बाद, राजनीतिक साजिशों के चलते वे मुगल सेनापति दिलेर खान के साथ चले गए, जिससे शिवाजी बहुत दुखी हुए। बाद में, संभाजी ने अपने पिता से सुलह की और मराठा साम्राज्य में वापस लौट आए।

राज्याभिषेक और चुनौतियां

1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, उनकी दूसरी पत्नी सोयराबाई और उनके समर्थकों ने संभाजी के बजाय राजाराम को गद्दी पर बिठाने की कोशिश की। लेकिन मराठा सेना के सर्वोच्च सेनापति हंबीरराव मोहिते ने संभाजी का साथ दिया। 1681 में संभाजी ने मराठा साम्राज्य की गद्दी संभाली। साजिश करने वालों को कड़ा सबक सिखाया गया—अन्नाजी दत्तो साबनीस जैसे दरबारियों को युद्ध हाथियों से कुचलवा दिया गया। संभाजी के सामने कई चुनौतियां थीं। उन्हें न केवल मुगल सम्राट औरंगजेब की विशाल सेना का सामना करना था, बल्कि आंतरिक कलह और बाहरी दुश्मनों से भी जूझना पड़ा। फिर भी, उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और साहस से मराठा साम्राज्य को एकजुट रखा और इसे और मजबूत किया।

मुगलों के खिलाफ जंग

1681 से 1689 तक संभाजी महाराज ने औरंगजेब की 8 लाख सैनिकों की सेना के खिलाफ 9 साल तक जबरदस्त युद्ध लड़ा। इस दौरान उन्होंने नासिक-बागलान क्षेत्र पर मुगल हमलों का डटकर मुकाबला किया। 1684 में मराठों ने राजगढ़, सिंहगढ़, और पुरंदर जैसे प्रमुख किलों की रक्षा की। 1686 में मुगलों ने रिश्वतखोरी का सहारा लिया और कुछ किले हासिल कर लिए, लेकिन संभाजी ने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति से मुगलों को परेशान करना जारी रखा। 1689 में कुछ मराठा किलों का नुकसान हुआ, लेकिन संभाजी की सेना ने हार नहीं मानी। उनकी इस जंग ने औरंगजेब को महाराष्ट्र में उलझाए रखा, जिससे बुंदेलखंड, पंजाब, और राजस्थान के हिंदू राज्यों को मुगल विस्तार से बचाने में मदद मिली। संभाजी की रणनीति ने मुगल साम्राज्य की नींव हिला दी।

Chhatrapati Sambhaji Maharaj: भीमा नदी किनारे दी वीरगति, संभाजी ने औरंगज़ेब की नींव हिला दी थी अपने बलिदान से

पुर्तगालियों के खिलाफ युद्ध और हिंदू पुनर्जनन

संभाजी महाराज ने न केवल मुगलों, बल्कि गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ भी जंग लड़ी। पुर्तगालियों ने वहां हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण और मंदिरों का विध्वंस किया था, जिसका संभाजी ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने गोवा में हिंदू समुदायों को और अधिक ईसाईकरण से बचाया। इसके अलावा, संभाजी ने उन हिंदुओं को फिर से अपने धर्म में वापस लाने का अभियान चलाया, जिनका जबरन धर्मांतरण हुआ था। उन्होंने हिंदू संस्कृति, परंपराओं, और मंदिरों की रक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उनकी यह कोशिश न केवल मराठा साम्राज्य, बल्कि पूरे भारत में हिंदू धर्म की रक्षा के लिए एक मिसाल बन गई। संभाजी का यह योगदान उन्हें एक सच्चे धर्मरक्षक के रूप में स्थापित करता है।

पकड़, यातना, और बलिदान

1689 में संभाजी महाराज अपने ही रिश्तेदार गणोजी शिर्के की गद्दारी के कारण मुगलों के हाथों पकड़े गए। औरंगजेब ने उन्हें 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएं दीं, उनकी आंखें निकाल लीं, और जीभ काट दी, लेकिन संभाजी ने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया। 11 मार्च 1689 को तुलापुर में उनकी क्रूर हत्या कर दी गई। उनकी पत्नी येसुबाई और बेटे शाहू महाराज को कैद कर लिया गया। संभाजी की इस शहादत ने मराठों में और जोश भरा। उनके भाई राजाराम महाराज और बाद में रानी ताराबाई ने उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाया। संभाजी की जंग ने औरंगजेब को 27 साल तक दक्कन में उलझाए रखा, जिससे मुगल साम्राज्य की कमर टूट गई। संभाजी का बलिदान भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है।

संभाजी महाराज की विरासत

छत्रपति संभाजी महाराज सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि हिंदू धर्म और स्वतंत्रता के प्रतीक थे। उनकी रणनीति और साहस ने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली शासक को दक्कन में उलझाए रखा, जिससे उत्तरी भारत के हिंदू राज्य सुरक्षित रहे। उनकी शहादत ने मराठों को और मजबूत किया, और उनकी प्रेरणा से मराठा साम्राज्य ने मुगलों को अंत तक चुनौती दी। आज महाराष्ट्र में उनके नाम पर कई किले और स्मारक हैं, जैसे पुरंदर किले पर उनकी मूर्ति। शाहीर योगेश का पवाड़ा “शेर शिवा का छावा था” उनकी वीरता को बखूबी बयां करता है। संभाजी महाराज की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा योद्धा वही है, जो अपने धर्म और सम्मान के लिए अंतिम सांस तक लड़ता है।

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