Mouse Jiggler: आज के दौर में कई कंपनियां अपने कर्मचारियों की निगरानी के लिए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रही हैं, जो स्क्रीन टाइम, कीबोर्ड की गतिविधि और यहां तक कि माउस क्लिक्स को भी ट्रैक करते हैं। ऐसे में माउस जिगलर नाम की तकनीक कर्मचारियों के लिए एक चुपके से इस्तेमाल होने वाला ‘हथियार’ बन गया है। इसका मुख्य मकसद है कंप्यूटर को हर वक्त सक्रिय रखना। जब कोई व्यक्ति माउस को कुछ देर तक नहीं हिलाता, तो सिस्टम अपने आप स्लीप मोड में चला जाता है। माउस जिगलर इस स्लीप मोड को रोकता है। यह या तो एक छोटा सा हार्डवेयर होता है, जो माउस के नीचे रखा जाता है और उसे लगातार हिलाता रहता है, या फिर एक सॉफ्टवेयर होता है, जो स्क्रीन पर माउस की कृत्रिम गतिविधि पैदा करता है। इससे सिस्टम को लगता है कि यूजर लगातार काम कर रहा है, जबकि हकीकत में वह वहां मौजूद भी नहीं होता।
माउस जिगलर की कीमत और घरेलू जुगाड़
इस तकनीक की कीमत भी ज्यादा नहीं है, जो इसे और आकर्षक बनाती है। एक रेडिट यूजर के मुताबिक, एक सामान्य माउस जिगलर ऑनलाइन सिर्फ 30 डॉलर (लगभग 2400 रुपये) में मिल जाता है। कुछ लोग तो इसे और सस्ते में हासिल करने के लिए घरेलू जुगाड़ का सहारा लेते हैं। जैसे, एक यूजर ने सुझाव दिया कि पुराने अलार्म क्लॉक की सेकंड हैंड भी माउस को हिलाने के लिए काफी है। एक अन्य यूजर ने कहा कि एक ऑसिलेटिंग पंखे पर स्टिक बांधकर माउस को हिलाया जा सकता है। ये जुगाड़ भले ही मजेदार लगें, लेकिन ये बताते हैं कि लोग कितनी आसानी से इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह सस्ता और आसान तरीका कर्मचारियों को निगरानी से बचने का एक रास्ता देता है, खासकर तब जब वे रिमोट वर्क कर रहे हों।
सोहम पारेख का चौंकाने वाला मामला
इस पूरे मामले में सोहम पारेख नाम का एक शख्स अचानक सुर्खियों में आ गया। उन पर आरोप है कि उन्होंने माउस जिगलर जैसे उपकरणों की मदद से एक साथ 34 नौकरियां कीं और हर दिन ढाई लाख रुपये तक की कमाई की। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है! हालांकि, यह सिर्फ उनका मामला नहीं है। कई रिपोर्ट्स का दावा है कि बहुत से लोग इस तकनीक का इस्तेमाल करके एक साथ कई नौकरियां कर रहे हैं। माउस जिगलर की मदद से वे अपने कंप्यूटर को सक्रिय दिखाते हैं, जिससे उनकी अनुपस्थिति का पता नहीं चलता। यह ट्रेंड खासकर रिमोट वर्क के बढ़ने के बाद तेजी से उभरा है, क्योंकि कंपनियां कर्मचारियों की हर गतिविधि पर नजर रखने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह तकनीक वाकई इतनी आसान और फूलप्रूफ है?
माउस जिगलर को पकड़ना आसान नहीं
माउस जिगलर को पकड़ना इतना आसान नहीं है, क्योंकि ये उपकरण सीधे कंप्यूटर से कनेक्ट नहीं होते और न ही सॉफ्टवेयर में आसानी से दिखाई देते। हार्डवेयर जिगलर तो और भी चुपके से काम करते हैं, क्योंकि वे बिना किसी इंस्टॉलेशन के माउस को हिलाते रहते हैं। फिर भी, कंपनियां कुछ तरीकों से इसका पता लगा सकती हैं। जैसे, अगर कोई रिमोट कर्मचारी अचानक से दिए गए काम का जवाब नहीं देता या समय पर रिस्पॉन्स नहीं करता, तो मैनेजमेंट को शक हो सकता है कि उसकी स्क्रीन पर दिख रही गतिविधि नकली है। कुछ उन्नत मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर अब माउस की गतिविधियों के पैटर्न को विश्लेषित करते हैं। अगर माउस हर कुछ सेकंड में एकसमान गति से हिल रहा है, तो यह जिगलर का संकेत हो सकता है। फिर भी, यह तकनीक इतनी चालाकी से काम करती है कि इसे पकड़ना एक चुनौती बना रहता है।
निगरानी पर बहस और नैतिक सवाल
माउस जिगलर की चर्चा सिर्फ तकनीक तक सीमित नहीं है; यह उस बड़े सवाल को भी उठाती है कि आखिर कंपनियां अपने कर्मचारियों की इतनी बारीकी से निगरानी क्यों करती हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की 10 सबसे बड़ी निजी कंपनियों में से 8 अपने कर्मचारियों की गतिविधियों पर लगातार नजर रखती हैं। स्क्रीन टाइम, कीबोर्ड की गतिविधि और माउस क्लिक्स जैसी चीजों को ट्रैक करने वाले सॉफ्टवेयर अब आम हो गए हैं। लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कंपनियां अपनी निगरानी की नीतियों को पारदर्शी तरीके से बताएं और इसके पीछे का मकसद साफ करें, तो कर्मचारी इसे ज्यादा आसानी से स्वीकार कर सकते हैं। माउस जिगलर का इस्तेमाल इस बात का संकेत है कि कई कर्मचारी इस निगरानी को घुसपैठ की तरह देखते हैं और इसे चकमा देने की कोशिश करते हैं।
विश्वास और पारदर्शिता की जरूरत
इस पूरे मुद्दे का हल तकनीक में नहीं, बल्कि विश्वास और पारदर्शिता में है। अगर कंपनियां कर्मचारियों के काम के नतीजों पर ध्यान दें, न कि उनकी हर छोटी-मोटी गतिविधि पर, तो माउस जिगलर जैसे उपकरणों की जरूरत ही न पड़े। कर्मचारियों को भी चाहिए कि वे अपनी जरूरतों को खुलकर बताएं, जैसे कि लंबे दस्तावेज पढ़ते वक्त या मीटिंग के दौरान स्क्रीन को सक्रिय रखने की जरूरत। दूसरी ओर, कंपनियों को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो कर्मचारियों को काम में लचीलापन दें, ताकि उन्हें इस तरह की तरकीबों का सहारा न लेना पड़े। माउस जिगलर का चलन यह दिखाता है कि आज के कामकाजी माहौल में विश्वास की कमी है। अगर दोनों पक्ष खुलकर बात करें और एक-दूसरे की जरूरतों का सम्मान करें, तो निगरानी और जिगलर जैसे उपकरणों की यह जंग खत्म हो सकती है। यह तकनीक भले ही छोटी सी लगे, लेकिन यह कार्यस्थल में विश्वास और नैतिकता के बड़े सवाल उठाती है।