Bindusara (320 ईसा पूर्व – 273 ईसा पूर्व) मौर्य वंश के दूसरे सम्राट थे, जिन्होंने लगभग 297 ईसा पूर्व से 273 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया। प्राचीन ग्रीको-रोमन लेखकों ने उन्हें ‘अमित्रोचेट्स’ कहा, जो संभवतः उनके संस्कृत उपनाम ‘अमित्रघात’ (शत्रुओं का संहारक) से लिया गया था। बिंदुसार मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र और महान सम्राट अशोक के पिता थे। उनके जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उनके समकालीन दस्तावेज कम हैं। उनके बारे में ज्यादातर जानकारी जैन और बौद्ध ग्रंथों से मिलती है, जो उनकी मृत्यु के सैकड़ों साल बाद लिखे गए। बिंदुसार ने अपने पिता के विशाल साम्राज्य को और मजबूत किया और इसे दक्षिण भारत तक विस्तारित किया। आइए, इस सम्राट के जीवन और शासन को और करीब से जानते हैं।
बिंदुसार का प्रारंभिक जीवन और परिवार
Bindusara का जन्म चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र के रूप में हुआ था, यह बात कई स्रोतों जैसे पुराणों और महावंश से पुष्ट होती है। हालांकि, दीपवंश में उन्हें शुशुनाग का पुत्र बताया गया है, और अशोकावदान की गद्य प्रति में उन्हें नंद वंश का वंशज कहा गया है, जो चंद्रगुप्त का नाम छोड़ देता है। जैन लेखक हेमचंद्र की 12वीं सदी की रचना ‘परिशिष्ट-पर्वन’ के अनुसार, बिंदुसार की माता का नाम दुर्धरा था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चंद्रगुप्त के सेल्यूसिड साम्राज्य के साथ वैवाहिक गठबंधन के कारण बिंदुसार की माता ग्रीक या मैसेडोनियन हो सकती थीं, लेकिन इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। बिंदुसार का नाम विभिन्न ग्रंथों में थोड़े बदलाव के साथ मिलता है, जैसे बौद्ध ग्रंथों में ‘बिंदुसारो’, जैन ग्रंथों में ‘विंदुसार’, और पुराणों में ‘वरिसार’ या ‘भद्रसार’। उन्हें ‘देवानांप्रिय’ की उपाधि भी दी गई थी, जो बाद में उनके पुत्र अशोक को भी मिली।
Bindusara की उत्पत्ति की कथा
बिंदुसार के नाम के पीछे एक रोचक किंवदंती है, जो बौद्ध और जैन दोनों ग्रंथों में मिलती है। दोनों के अनुसार, चंद्रगुप्त के मंत्री चाणक्य उनकी भोजन में थोड़ी मात्रा में जहर मिलाया करते थे, ताकि सम्राट को जहर से बचाव की प्रतिरोधक क्षमता मिले। एक दिन, चंद्रगुप्त ने बिना जाने अपनी गर्भवती पत्नी के साथ यह भोजन साझा कर लिया। बौद्ध ग्रंथों (महावंश और महावंश टीका) के अनुसार, उस समय रानी प्रसव से सात दिन दूर थीं। चाणक्य ने जब देखा कि रानी ने जहर वाला भोजन खा लिया, तो उन्होंने तुरंत रानी का सिर काटकर गर्भ से बच्चे को निकाला। अगले सात दिनों तक, उन्होंने प्रतिदिन एक बकरी के पेट में उस भ्रूण को रखा। सातवें दिन बच्चा पैदा हुआ, जिसके शरीर पर बकरी के खून के धब्बे थे। इसलिए उसका नाम ‘बिंदुसार’ (बिंदु + सारा, यानी खून के धब्बों वाला) रखा गया। जैन ग्रंथों में भी यही कहानी है, लेकिन वहां रानी का नाम दुर्धरा बताया गया है।
Bindusara का शासन और साम्राज्य विस्तार
बिंदुसार ने अपने पिता चंद्रगुप्त से एक विशाल साम्राज्य विरासत में लिया था। उन्होंने इस साम्राज्य को और मजबूत किया और दक्षिण भारत की ओर विस्तार किया। 16वीं सदी के तिब्बती बौद्ध लेखक तारानाथ ने दावा किया कि बिंदुसार ने दक्षिण भारत में व्यापक विजय प्राप्त की, लेकिन कुछ इतिहासकार इस दावे की ऐतिहासिक प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। बिंदुसार ने तमिलनाडु के मैत्रीपूर्ण राज्यों पर आक्रमण नहीं किया, लेकिन उनके शासन में मौर्य साम्राज्य का विस्तार आज के कर्नाटक तक हुआ। उनके शासनकाल में उज्जैन एक महत्वपूर्ण प्रांतीय राजधानी थी, जहां उनके पुत्र अशोक उपराज्यपाल थे। बिंदुसार का शासन स्थिर और समृद्ध था, जिसने उनके पुत्र अशोक के लिए एक मजबूत नींव तैयार की।
बिंदुसार के परिवार और उत्तराधिकारी
बौद्ध और जैन ग्रंथों के अनुसार, बिंदुसार के कई पत्नियों से कई पुत्र थे। अशोकावदान के गद्य संस्करण में उनके तीन पुत्रों—सुशीम, अशोक, और विगटाशोक—का जिक्र है। अशोक और विगटाशोक की माता सुभद्रांगी थीं, जो चंपा शहर के एक ब्राह्मण की बेटी थीं। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि सुभद्रांगी का एक बेटा सम्राट बनेगा और दूसरा धार्मिक पुरुष। बिंदुसार की अन्य पत्नियों ने सुभद्रांगी की सुंदरता से जलन के कारण उसे नाई का काम सिखाया। जब बिंदुसार को उसकी ब्राह्मण उत्पत्ति का पता चला, तो उन्होंने उसे मुख्य रानी बनाया। महावंश के अनुसार, बिंदुसार की 16 पत्नियों से 101 पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़े सुशीम और सबसे छोटे तिष्य थे। अशोक और तिष्य एक ही माता से थे, जिनका नाम कुछ स्रोतों में ‘धम्मा’ या ‘जनपदकल्याणी’ बताया गया है।
बिंदुसार की विरासत और ऐतिहासिक महत्व
Bindusara का शासनकाल मौर्य साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी था। उन्होंने चंद्रगुप्त के साम्राज्य को न केवल संरक्षित किया, बल्कि इसे और विस्तार दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अशोक ने मौर्य साम्राज्य को उसके चरम पर पहुंचाया। बिंदुसार के बारे में जानकारी सीमित होने के बावजूद, यह साफ है कि उनके शासन ने मौर्य साम्राज्य की नींव को मजबूत किया। उनकी उपाधि ‘अमित्रघात’ और ग्रीक स्रोतों में ‘अमित्रोचेट्स’ का उल्लेख उनकी सैन्य ताकत को दर्शाता है। जैन और बौद्ध ग्रंथों में उनकी कहानियां, भले ही कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण हों, उनके व्यक्तित्व और शासन की झलक देती हैं। बिंदुसार की कहानी हमें सिखाती है कि एक सम्राट की महानता न केवल युद्धों में, बल्कि अपने साम्राज्य को स्थिर और समृद्ध बनाने में भी होती है।